Monday 12 March 2018

एक ध्यान मग्न दुनिया कैसी होगी?





एक ध्यान मग्न दुनिया कैसी होगी?


कैसा हो यदि इस संसार में हर व्यक्ति के भीतर ध्यान इस तरह बहे जैसे धमनियों में रक्त बहता है।
हम अपने जीवन का सारा समय विचारों में ही उलझे रहते हैं। अतीत के विचार या भविष्य के विचार।
कैसा हो यदि हम वर्तमान पल में रुक सकें, उसे पूरा-पूरा जी सकें।
कैसा हो यदि हमारे और हमारे वर्तमान क्षण के बीच कोई विचार ना आए और हम जीवन को विचारों के उतार-चढ़ाव के बिना देख पायें।

कैसी होगी वो दुनिया जब हर व्यक्ति ध्यान करना चाहता होगा और ध्यान करना जानता होगा। 
कैसी होगी वो दुनिया जब मनुष्य नफ़रत करना भूल चुका होगा।
कैसी होगी वो दुनिया जब हर व्यक्ति अपनी एक एक साँस के प्रति जागरूक होगा।
कैसी होगी वो दुनिया जब हर व्यक्ति वर्तमान पल में होगा।

ये सवाल नही, स्वशक्तिकरण कार्यक्रम का स्वप्न है जिसे वास्तविकता में रूपांतरित करने के लिए ए॰टी॰एम॰- एनी टाइम मेडिटेशन कैम्पेन कि शुरुआत हो चुकी है।


मनुष्य का मूल रूप ध्यान ही है और हर मनुष्य के अन्दर सम्भावना है कि वो अपने इस सच्चे स्वरूप से एक हो सके।
इस अंतर्यात्रा के पथिक ही मानव जीवन की अनंत संभावनाओं को आने वाले समय में छू सकेंगे।
बाहरी सफलता के साथ-साथ भीतरी शान्ति और आत्म-जागरूकता एक ऐसी मानवता को जन्म देगी जो प्रेम और ध्यान  पर आधारित होगी।
कुछ लोग इसे असम्भव लगने वाली कोरीं कल्पना मान सकते हैं, पर अध्यात्म के वैज्ञानिक जानते है कि कल्पना ही मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति है।
मनुष्य एक भवन की कल्पना करता है और उसका निर्माण हो जाता है. ये घटना विपरीत क्रम में नहीं घट सकती।

सोचिये कि आज बिजली नही होती तो कैसा होता | वर्तमान युग में बिजली के बिना जीवन असम्भव सा लगता है क्योंकि दैनिक जीवन में हम सारे कार्य बिजली के प्रयोग से ही करते है. 

लेकिन आज से लगभग 150 साल पहले बिजली का कोई नामोनिशान नही था और लालटेन एवं मशालो के जरिये ही जीवन निकालना पड़ता था | तब एक वैज्ञानिक ने ऐसा कमाल कर दिखाया जिसके लिए आज भी इन्सान उनका ऋणी है | निकोला टेस्ला ने बिजली की खोज कर वैज्ञानिक युग में एक क्रान्ति ला दी थी 


निकोला कहा करते थे कि जिस दिन विज्ञान अवचेतन मन के जगत का पूरा अध्ययन कर लेगा उस दिन मानवता इतनी प्रगति कर लेगी जितनी वो सदियों में नहीं कर पायी है।

स्वशक्तिकरण कार्यक्रम कुछ ऐसा ही कार्य इस समय पृथ्वी पर कर रहा है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत लोग निशुल्क रूप से अवचेतन मन से सम्बंधित वो वैज्ञानिक ज्ञान सीखते हैं जिनकी दुनिया में भारी-भरकम फ़ीसें वसूली जाती है। इस कार्यक्रम में मन, शरीर और आत्मा के ज्ञान के साथ-साथ ध्यान और आत्म-चिकित्सीय विधियाँ सीखायी जाती हैं जो पूरी तरह से हमारी आंतरिक ऊर्जा और मन की शक्ति से जुड़ीं हैं।

ए॰टी॰एम॰ इसी स्वशक्तिकरण कार्यक्रम के अन्तर्गत एक क्रान्ति है जिसमें हमारे स्वैच्छिक कार्यकर्ता किसी भी भीड़-भाड़ और कोलाहल से भरे सार्वजनिक स्थल पर बैठ कर साँसो पर ध्यान लगाते हैं। साथ ही वे जनता से आग्रह करते हैं कि वो भी उनके साथ बैठ कर कुछ देर साँसो पर ध्यान लगायें।

लोगों को पहले पहल झिझक होती है क्यूँकि ये सामान्य धारणा है कि ध्यान केवल एक शांत वातावरण में ही किया जा सकता है। 
परन्तु ये एक मिथ है।
आप जहाँ चाहें, वहीं आती-जाती साँस को महसूस कर सकते है। जिस पल आप साँसो पर ध्यान लगाते हैं उसी पल आप असीम शान्ति में प्रवेश करते हैं।
ऐसा संभव ही नही है कि आप साँसो पर ध्यान केन्द्रित करें और तनाव में भी हों। ये दोनों घटनाए एक साथ नहीं घट सकती।

ATM के दौरान पहली बार ध्यान करने वाले लोगों ने बताया कि शुरुआत में शोर उन्हें बाधक लगा, पर जैसे ही उन्होंने शोर को पूरी तरह स्वीकार कर लिया वो अपनी साँसो पर एकाग्रचित्त हो कर बहुत देर तक आराम से ध्यान कर पाये।

कुछ लोगों के लिये शोर और भीड़ के बीच ध्यान का अभ्यास बहुत ही आश्चर्यजनक था। कुछ लोग अपना मोबाइल फ़ोन निकाल कर ध्यान करते लोगों कि तस्वीरें उतारने लगे और कुछ लोग झिझक त्याग कर हमारे साथ बैठ कर ध्यान करने लगे।

ध्यान मानव जीवन का सबसे अनमोल उपहार है और हम सब इस जागरूकता को पूरे विश्व में फैलाने के लिये प्रतिबध है। 

यदि आप भी हमारे इस अनूठे अभियान का हिस्सा बनना चाहते हैं तो हमें ज़रूर लिखें: info@galwayfoundation.org

धन्यवाद
रोमश्री अशेष